एक छोटे से गाँव में, रमेश नाम का एक व्यस्त व्यापारी रहता था। वह दिन-रात काम में डूबा रहता, लेकिन मन में हमेशा एक अजीब सी बेचैनी थी।
ध्यान केवल एक प्रक्रिया नहीं है, यह एक जीवनशैली है।
एक दिन, उसकी मुलाकात एक बूढ़े साधु से हुई, जो गाँव के बरगद के पेड़ तले ध्यानमग्न बैठे थे। रमेश ने उनसे पूछा, "बाबा, मेरे पास सबकुछ है, फिर भी मन शांत क्यों नहीं?"साधु मुस्कुराए और बोले, "बेटा, तू अपने मन को कभी सुनता नहीं, सिर्फ़ भागता है। आ, मेरे साथ 3 मिनट बैठ।" रमेश अनमने मन से बैठ गया। साधु ने कहा, "आँखें बंद कर, साँसों पर ध्यान दे।" रमेश ने ऐसा ही किया। पहले तो उसका मन इधर-उधर भटका, लेकिन धीरे-धीरे साँसों की लय ने उसे शांत किया। तीन मिनट बाद, जब उसने आँखें खोलीं, तो उसे लगा जैसे वह पहली बार अपने भीतर की शांति से मिला हो।साधु बोले, "ध्यान कोई जादू नहीं, यह तुझे हर पल तेरी आत्मा से जोड़ता है। इसे आदत बना, यह तेरी जीवनशैली बन जाएगी।" रमेश ने उस दिन से हर सुबह 3 मिनट ध्यान करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी बेचैनी गायब हो गई, और वह हर काम में शांति और स्पष्टता के साथ जुटने लगा।
सार: ध्यान केवल समय की बात नहीं, यह आत्मा से जुड़ने की कला है, जो जीवन को बदल देती है