जिस तरह कमल कीचड़ में रहकर भी कीचड़ से गंदा नहीं होता उसी तरह आध्यात्मिक व्यक्ति कठिन परिस्थितियों से विचलित या माया से अशुद्ध नहीं होता।

 एक छोटी-सी नदी के किनारे, कीचड़ से भरे तालाब में एक कमल का फूल खिलता था। उसका रंग इतना शुद्ध और सुंदर था कि राहगीर रुककर उसे निहारते। पास ही एक बूढ़ा साधु अपनी कुटिया में रहता था। वह हर सुबह कमल को देखकर मुस्कुराता और ध्यान में डूब जाता।



एक दिन, एक युवक साधु के पास आया। वह परेशान था। "बाबा," उसने कहा, "यह संसार माया और दुखों से भरा है। मैं हर जगह केवल स्वार्थ और कठिनाइयाँ देखता हूँ। मैं कैसे शुद्ध रहूँ?"साधु ने उसे तालाब की ओर ले जाकर कमल की ओर इशारा किया। "देखो," साधु बोले, "यह कमल कीचड़ में जन्म लेता है, कीचड़ में पलता है, फिर भी उसकी पंखुड़ियाँ निर्मल हैं।


 वह कीचड़ को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता।"युवक ने पूछा, "लेकिन बाबा, मैं तो कमल नहीं हूँ। मैं इस माया से कैसे बचूँ?"साधु मुस्कुराए। "आध्यात्मिक व्यक्ति कमल की तरह होता है। वह संसार में रहता है, कठिनाइयों का सामना करता है, पर उसका मन शुद्ध रहता है। ध्यान, सत्संग और सच्चाई के बल पर वह माया के बंधनों से मुक्त रहता है। जैसे कमल कीचड़ से ऊपर उठकर सूरज की ओर देखता है, वैसे ही तू अपने मन को ईश्वर की ओर मोड़।


"युवक ने साधु की बात सुनी और रोज़ सुबह कमल को देखकर ध्यान करने लगा। धीरे-धीरे उसका मन शांत हुआ, और वह समझ गया कि कठिन परिस्थितियाँ शरीर को छू सकती हैं, पर आत्मा को शुद्ध रखना उसके अपने हाथ में है।


नैतिक: आध्यात्मिक व्यक्ति कमल की तरह होता है संसार के कीचड़ में रहकर भी वह अपनी शुद्धता और शांति को बनाए रखता है।

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