खेत सूख गए, गंगा का पानी कम हो गया, और राधा का परिवार भूख से जूझने लगा। राधा हर सुबह मंदिर जाती, माथा टेकती और पूछती, "हे ईश्वर, आपने मेरी पुकार क्यों नहीं सुनी? क्या मैंने कोई गलती की?" लेकिन जवाब के बजाय, और मुश्किलें सामने आतीं।एक रात, गहरी निराशा में, राधा ने मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर रोते हुए कहा, "ईश्वर, अगर आप हैं, तो मुझे रास्ता दिखाइए।" तभी, एक बूढ़ी माँ मंदिर से निकलीं। उन्होंने राधा को रोते देखा और पास बैठ गईं।
"बेटी," माँ ने कहा, "ईश्वर तुम्हारी परीक्षा नहीं ले रहा, वह तुम्हें मजबूत बना रहा है। वह चाहता है कि तुम उस पर भरोसा करना सीखो, न कि केवल अपनी भावनाओं पर।"राधा ने आँखें पोंछीं और पूछा, "लेकिन कैसे? सब कुछ खो रहा है।" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "विश्वास का मतलब है, अंधेरे में भी चलते रहना। कल सुबह, गंगा के उस पार जाओ। वहाँ एक पुराना कुआँ है।
लोग कहते हैं, वह सूख गया है, लेकिन विश्वास रखो।"राधा को बात अजीब लगी, लेकिन अगली सुबह, वह गंगा पार गई। कुएँ तक पहुँचने में उसकी साँसें फूल गईं। कुआँ पुराना और टूटा-फूटा था। उसने हिम्मत करके रस्सी खींची। पहले तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन फिर, धीरे-धीरे, पानी ऊपर आया। साफ, ठंडा पानी! राधा की आँखें भर आईं।
उसने गाँव वालों को बुलाया, और जल्दी ही, वह कुआँ गाँव की प्यास बुझाने लगा।उस दिन राधा समझ गई कि ईश्वर ने उसकी पुकार सुनी थी, लेकिन जवाब उसी तरह नहीं आया, जैसा वह चाहती थी। ईश्वर ने उसे विश्वास का रास्ता दिखाया, उसे सिखाया कि मुश्किलें उसे तोड़ने नहीं, बल्कि बनाने के लिए आती हैं। उसने मंदिर में माथा टेका और कहा, "ईश्वर, अब मैं समझ गई। आपका रास्ता मेरी भावनाओं से नहीं, मेरे विश्वास से बनता है।
सीख :- राधा की कहानी हमें सिखाती है कि ईश्वर की परीक्षा हमें कमजोर करने के लिए नहीं, बल्कि हमें परिपक्व और मजबूत बनाने के लिए होती है। विश्वास का रास्ता आसान नहीं, लेकिन यही हमें सच्ची शक्ति देता है।